जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी।।
यह समाधि, यह लघु समाधि है, झांसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली है, लक्ष्मी मर्दानी की।।
यहीं कहीं पर बिखर गए वह, भग्न विजय-माला सी।
उसके फूल यहां संचित हैं, है यह स्मृति - शाला सी।।
सहे वार पर। वार अंत तक, लड़ी वीर बाला सी।
आहुति - सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी।।
बढ़ जाता है मन वीर का, रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से।।
रानी से भी अधिक हमे अब, यह समाधि है प्यारी।
यहां निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी।।
इससे भी सुंदर समाधियां, हम जग में है पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते।।
पर कवियों की अमर गिरा में, इसकी अमित कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है, वीरो की बनी।।
बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी।
खूब लड़ी मर्दानी वह थी, झांसी वाली रानी।।
यह समाधि, यह चिर समाधि , है झांसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मर्दानी की।।
-:(लेखक: सुभद्रा कुमारी चौहान (त्रिधारा से)):-
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